इन नेत्रों से देखोगी,जब आएँगे श्री राम।।
थे त्रिकालदर्शी मतङ्ग , मम निकट आ गया अन्त।
जन्म नहीं अब तक हुआ, पर आएँ भगवन्त।।
शबरी बूढ़ी हो गई, पर न डिगा विश्वास ।
फूल सजाए राह, रखे ताज़ा फल अपने पास।।
झूटे फल कर भेंट, प्रेम से झर झर करते नैन।
मैत्री हो सुग्रीव से, ऋषिवर के थे बैन ।।
प्रतीक्षा रत भीलन का मान।
भक्त के वश में हैं भगवान।।
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