तेरे मुख-दर्पण में अपनी छवि देखी तो स्वयं लुटा था।
तुम ही कुछ निर्देश मुझे दो हे प्रेयसि मैं क्या करूँ?
मैं भोला भाला सा मानव कैसे जग प्रपंच पहचानूँ?
कौन बुरा है कौन भला है यह दुविधा है मैं क्या जानूँ?
तुम ही दो आदेश मुझे कुछ हे प्रेयसि मैं क्या करूँ?
कुछ भी सूझ नहीं पाता मैं क्या करना है क्या न करना?
किस से पूछूँ मैं न जानूँ किस मग पर हैअब पग धरना?
तुम ही कर विश्लेष कहो कुछ हे प्रेयसि मैं क्या करूँ?
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