ॐ कालाभ्रामां कटाक्षेररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखां
शङ्खं चक्रं कृपाणंत्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम्।
सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीं
ध्यायेद् दुर्गांजयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः।।
जिन्हें सिद्धि की इच्छा है वे सेवा करें महान।
घेरे उनको देव सभी गणमान करें गुणगान।
उनके श्री अंगों की शोभा काले मेघ समान।
उनके तो कटाक्ष भी देते अरिगण को भयमान।
मस्तक पर है चन्द्र सुशोभित वाहन सिंह महान।
हैं त्रिनेत्र माता के, तेज चतुर्दिश फैला आन।
उनके कर कमलों में शोभित शङ्ख चक्र कृपाण।
उनके धारण करने से बढ़ता त्रिशूल का मान।
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