Monday, 5 June 2023

KAIF AHMED SIDDIQUI... GHAZAL.. HAM AAJ Kuchh HASIIN SARAABON MEN KHO GAYE

हम आज कुछ हसीन सराबों में खो गए 

आँखें खुलीं तो जागते ख़्वाबों में खो गए 

हम सफ़्हा-ए-हयात से जब बे-निशाँ हुए 

लफ़्ज़ों की रूह बन के किताबों में खो गए 

आईना-ए-बहार के कुछ अक्स-ए-मुज़्महिल 

ख़ुशबू का रंग पा के गुलाबों में खो गए 

दर-अस्ल बर्शगाल के तुम आफ़्ताब थे 

बरसात जब हुई तो सहाबों में खो गए 

निकले थे जो भी आज तलाश-ए-सवाब में 

वो ज़िंदगी के सख़्त अज़ाबों में खो गए 

दिल को थी एक शहर-ए-तमन्ना की जुस्तुजू 

लेकिन हम आरज़ू के ख़राबों में खो गए 

जब मसअला हयात का कुछ हल न हो सका 

हम 'कैफ़' फ़लसफ़े की किताबों में खो गए

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