इस कमाई पे तो इज़्ज़त नहीं मिलने वाली
इफ़्तिख़ार आरिफ़
औरत हो तुम तो तुम पे मुनासिब है चुप रहो
ये बोल ख़ानदान की इज़्ज़त पे हर्फ़ है
सय्यदा अरशिया हक़.
हमेशा ग़ैर की इज़्ज़त तिरी महफ़िल में होती है
तिरे कूचे में जा कर हम ज़लील-ओ-ख़्वार होते हैं
शौकत थानवी
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