Tuesday, 11 July 2023

AHMAD FARAZ.. GHAZAL..

जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरेजुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरेतू कहां है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे


तू भी ख़ुशबू है मगर मेरा तजस्सुस बेकारबर्ग-ए-आवारा की मानिंद ठिकाने मेरे

शम्अ की लौ थी कि वो तू था मगर हिज्र की रातदेर तक रोता रहा कोई सिरहाने मेरे

ख़ल्क़ की बे-ख़बरी है कि मिरी रुस्वाईलोग मुझ को ही सुनाते हैं फ़साने मेरे

लुट के भी ख़ुश हूं कि अश्कों से भरा है दामनदेख ग़ारत-गर-ए-दिल ये भी ख़ज़ाने मेरे

आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैरजिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे

काश तू भी मेरी आवाज़ कहीं सुनता होफिर पुकारा है तुझे दिल की सदा ने मेरे

काश तू भी कभी आ जाए मसीहाई कोलोग आते हैं बहुत दिल को दुखाने मेरे

काश औरों की तरह मैं भी कभी कह सकताबात सुन ली है मिरी आज ख़ुदा ने मेरे

तू है किस हाल में ऐ ज़ूद-फ़रामोश मिरेमुझ को तो छीन लिया अहद-ए-वफ़ा ने मेरे


चारा-गर यूं तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-‘फ़राज़’जुज़ तिरे और कोई ज़ख़्म न जाने मेरे

5)
दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वालादोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वालावही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला

अब उसे लोग समझते हैं गिरफ़्तार मिरासख़्त नादिम है मुझे दाम में लाने वाला

सुब्ह-दम छोड़ गया निकहत-ए-गुल की सूरतरात को ग़ुंचा-ए-दिल में सिमट आने वाला

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उस सेवो जो इक शख़्स है मुंह फेर के जाने वाला

तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनियाआज तन्हा हूं तो कोई नहीं आने वाला

मुंतज़िर किस का हूं टूटी हुई दहलीज़ पे मैंकौन आएगा यहां कौन है आने वाला

क्या ख़बर थी जो मिरी जां में घुला है इतनाहै वही मुझ को सर-ए-दार भी लाने वाला

मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलतेहै कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला


तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो ‘फ़राज़’दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला

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