Monday, 17 July 2023

BASHIR BADR.. GHAZAL..

मिरे साथ तुम भी दु'आ करो यूँ किसी के हक़ में बुरा न हो 

कहीं और हो न ये हादिसा कोई रास्ते में जुदा न हो 

सर-ए-शाम ठहरी हुई ज़मीं जहाँ आसमाँ है झुका हुआ 

उसी मोड़ पर मिरे वास्ते वो चराग़ ले के खड़ा न हो 

मिरी छत से रात की सेज तक कोई आँसुओं की लकीर है 

ज़रा बढ़ के चाँद से पूछना वो उसी तरफ़ से गया न हो 

मुझे यूँ लगा कि ख़मोश ख़ुशबू के होंट तितली ने छू लिए 

उन्हीं ज़र्द पत्तों की ओट में कोई फूल सोया हुआ न हो 

इसी एहतियात में वो रहा इसी एहतियात में मैं रहा 

वो कहाँ कहाँ मिरे साथ है किसी और को ये पता न हो 

वो फ़रिश्ते आप तलाश करिए कहानियों की किताब में 

जो बुरा कहें न बुरा सुनें कोई शख़्स उन से ख़फ़ा न हो 

वो फ़िराक़ हो कि विसाल हो तिरी आग महकेगी एक दिन 

वो गुलाब बन के खिलेगा क्या जो चराग़ बन के जला न हो

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