Thursday, 3 August 2023

GHAM-E-AASHIQI SE KAH DO RAH-E-AAM TAK N PAHUNCHE.. GHAZAL.. SHAKEEL BADAYUNI.......

ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे 
मुझे ख़ौफ़ है ये तोहमत तिरे नाम तक न पहुँचे blame

मैं नज़र से पी रहा था तो ये दिल ने बद-दुआ दी 
तिरा हाथ ज़िंदगी भर कभी जाम तक न पहुँचे 
Weak voice 
वो नवा-ए-मुज़्महिल क्या न हो जिस में दिल की धड़कन 
वो सदा-ए-अहल-ए-दिल क्या जो अवाम तक न पहुँचे 
Sound of people with heart
मिरे ताइर-ए-नफ़स को नहीं बाग़बाँ से रंजिश bird of spirit
मिले घर में आब-ओ-दाना तो ये दाम तक न पहुँचे 

नई सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है 
ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे 
Air of carelessness 
ये अदा-ए-बे-नियाज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारक 
मगर ऐसी बे-रुख़ी क्या कि सलाम तक न पहुँचे 

जो नक़ाब-ए-रुख़ उठा दी तो ये क़ैद भी लगा दी 
उठे हर निगाह लेकिन कोई बाम तक न पहुँचे 

उन्हें अपने दिल की ख़बरें मिरे दिल से मिल रही हैं 
मैं जो उन से रूठ जाऊँ तो पयाम तक न पहुँचे 

वही इक ख़मोश नग़्मा है 'शकील' जान-ए-हस्ती 
जो ज़बान पर न आए जो कलाम तक न पहुँचे

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