Monday, 4 September 2023

देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम् अंतिम दो श्लोक श्रीदुर्गासप्तशत्यम्... हिन्दी रूपान्तरण... रवि मौन

जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्तु चेन्मयि। 
अपराध परम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम्।। 

जगदम्ब मुझ पर जो कृपा अब भी तुम्हारी है बनी। 
कुछ भी नहीं आश्चर्य इस में यह सदा से ही रही। 
अपराध पर अपराध भी यदि कर रहा, सुत मान कर। 
माता कभी करती नहीं उस की उपेक्षा, जान कर।। 

मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि। 
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु।। 

मुझ सा नहीं है पातकी, न हि पापनाशक आप सा। 
यह जान कर माता करें, जो मन करे सो आप का।। 

No comments:

Post a Comment