Tuesday, 19 March 2024

मंकुतिम्मा द्वितीय प्रार्थना पद---- हिन्दी पद्यानुवाद




जड़ चेतन का अखिल सृष्टि में होता रहता है विस्तार। 
करे आवरण इस का औ' भीतर भी है जिस का संचार। 
अप्रमेय है भाव तर्क से परे, सुना ऐसा अविराम। 
है यह शक्ति विशेष झुको इस के आगे हे भोलेराम ।

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