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Sunday, 26 May 2024

अष्टावक्र महागीता का एक श्लोक

समदुःखसुखः पूर्ण आशानैराश्ययोः समः।
समजीवितमृत्युःसन्-नेवमेव लयं व्रज।।
अष्टावक्र 

तू आत्मज्ञानी है अतः सुख दुःख एक समान है। 
आशा निराशा में नहीं अन्तर, तुझे यह भान है। 
जीवन मृत्यु हो गई अब तेरे लिए अस्तित्वहीन।
इस हेतु इन अनुभूतियों को तू कर दे लयलीन।।

हिन्दी पद्यानुवाद    रवि मौन 

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