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Thursday, 13 June 2024

अष्टावक्र महागीता नवम् प्रकरणः तृतीय श्लोक

अनित्यं सर्वमेवेदं तापत्रयदूषितं।
असारं निन्दितं हेयमि-ति निश्चित्य शाम्यति।। 3।।

हिन्दी पद्यानुवाद----रवि मौन 

दूषित तीनों ताप से है यह विश्व अनित्य। 
यह असार, निन्दित, घृणा योग्य ही रहा नित्य। 
निश्चयपूर्वक जो इसे ज्ञानी लेता जान। 
परम शांति पाता वही, पूर्ण उसी का ज्ञान।। 3 ।। 

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