Saturday, 22 June 2024

अष्टावक्र महागीता दशम् प्रकरणः श्लोक संख्या द्वितीय

स्वप्नेन्द्रजालवत् पश्य दिनानि त्रीणि पंच वा।
मित्रक्षेत्रधनागार-दारदायादि संपदः।। २।।

हिन्दी पद्यानुवाद 

मित्र, खेत, सम्पत्ति, घर, पत्नी, इन्द्रिय जाल। 
दृश्यमान सम्बन्ध ये सभी, क्षणिक है काल। 
देते इन्द्रिय सुख सभी, कुछ दिन का ही जान। 
अल्पावधि के स्वप्न सब, इन्हें क्षणिक ही मान।। २।।


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