तृप्तः स्वस्थेन्द्रियो नित्यं न वाञ्छति न शोचति।। ३।।
सम्पद आपद दैवयोग से मिलें समय अनुसार।
जो जाने यह सत्य, वही हो पूर्ण तृप्त हर बार।
जीते वह नर सभी इन्द्रियाँ, इच्छा रहे न एक।
पाकर होय प्रसन्न न ,खो हों न विषाद अनेक।। ३।।
हिन्दी पद्यानुवाद.... रवि मौन
No comments:
Post a Comment