दर्शन मन्दिर के करें भर मन में उत्साह।
शुभस्थल है भाण्डीर वन, वट वृक्ष की छाया।
श्रीब्रह्मा ने ही चुना औ' निज धर्म निभाया।
द्वापर युग की यह कृति है वृन्दावन से कुछ दूर।
श्रीराधाजी के विग्रह में दिखे स्पष्ट सिन्दूर।
ब्रह्म कुण्ड है जहाँ अग्नि के फिर कर चारों ओर।
घूमे सात बार राधा संग मुरलीधर चितचोर।
इस दैवी घटना से कितने ही मानव अनजान।
पढ़िए गर्गसंहिता तथा ब्रह्म वैवर्त पुराण ।
'मौन' तुम्हारी लेखनी को अब दो विश्राम।
मात सरस्वति की कृपा से हो पाया काम।।
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