Friday, 31 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई.... न लायके-मस्जिदम न दर ख़ुरद किनिश्त.....१५.

न लायके-मस्जिदम न दर ख़ुरद किनिश्त
ऐज़द दानद गिले-मरा ज़ चि. सिरिश्त
चूँ काफ़िरे-दरवेशम् व यूँ कुहूबः-ए-ज़िश्त
न दीन व न दुनिया व न उम्मीदे-बिहिश्त

लायक मैं न मस्जिद के हूँ न मन्दिर के द्वार
किस मिट्टी से गूँधा मुझको यह जानें करतार
हूँ काफ़िर दरवेश या एक तवायफ़ जान
मुझे चाह न बहिश्त की, न मज़हब, संसार 



Thursday, 30 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई... दर इश्क़ ज़ सदगूना मलामत बकुशम.... 16

दर इश्क़ ज़ सदगूना मलामत बकुशम
वर बशिकनम ईं अह्द गरामत बकुशम 
गर उम्र वफ़ा कुन्द ज़फ़ाहा-ए-तुरा
बारे कम अजाँ कि ता कयामत बकुशम

इश्क़ में सौ गुने दुःख मैं सहता रहूँ 
ये अह्द तोड़ूँ तो पशेमाँ रहता रहूँ 
उम्र गर वफ़ा करे तो ये चाहत मिरी
ता कयामत मैं तिरे ज़ुल्म सहता रहूँ 

Wednesday, 29 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई... मक्सूद ज़ जुम्लः आफ़रीनश मायेम.... 14

मक्सूद ज़ जुम्लः आफ़रीनश मायेम 
व र जिस्म ख़िरद ज हर बीनश मायेम
ईं दायरः-ए-जहाँ चू अंगुश्तरी अस्त
बे हेच शक़े-नक़्श नगीनश मायेम

इस सारी ख़ल्वत का मक्सद भी तो हम हैं
ख़िरद देखती है जिसको वो भी तो हम हैं
दुनिया का दायरा अगर अंगूठी है तो
बेशक  उसमें जड़ा नगीना भी तो हम हैं

Tuesday, 28 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई.... मय ख़ुर्दने-मन न अज़ बरा - ए-तरबस्त.....13

मय ख़ुर्दने-मन न अज़ बरा - ए-तरबस्त
नबह्रे-फ़सादो तर्के-दीनो अदबस्त
ख़्वाहम कि ब बेख़ुदी बर आरम नफ़्से
मय ख़ुर्दनो-मस्त बूदनो-मा जो सबबस्त

मेरी मयकशी ऐश की ख़ातिर नहीं है
फ़साद या तर्के-दीं की ख़ातिर नहीं है
चाहता हूँ मिरी हर साँस बेख़ुदी में रहे
मेरी मयकशी का बस मक़सद यही है

Monday, 27 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई... गोयन्द म रा कि मयपरस्तम हस्तम.....12

गोयन्द म रा कि मयपरस्तम हस्तम 
गोयन्द म रा आरिफ़ो-मस्तम हस्तम
दर ज़ाहिरे-मन निगह बिस्यार मकुन
कन्दर नातिन चुनाँ वि हस्तम हस्तम


मयपरस्तम हूँ मैं ऐसा कहते हैं सब लोग
मतवाला और ज्ञानी हूँ कहते हैं सब लोग 
दिल से ज़ाहिर ऐसी निगह युँही मत कर
अन्दर बाहर यकसाँ हूँ कहते हैं सब लोग 


Sunday, 26 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई... मय बर कफे - मा नह कि दिलम दर ताब अस्त.....11.

मय बर कफे-मा नह कि दिलम दर ताब अस्त
वीं उम्रे-गुरेज़ पा-ए-चूँ सीमाब अस्त
बर ख़ेज कि बेदारी-ए-दौलत ख़्वाब अस्त
दरयाब कि आतिशे-जवानी आब अस्त

मय मेरी हथेली में दे उलझन में यही है
पारे के ही मानिंद उम्र ये दौड़ रही है
उठ! दौलत का जगना भी इक ख़्वाब है
समझ कि पानी जवानी की आग रही है

Saturday, 25 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई.... रोज़े कि ज़ तू गुज़श्तः शुद याद मकुम....33

रोज़े कि ज़ तू गुज़श्तः शुद याद मकुम
फ़र्दा कि नयामदस्त फ़रियाद मकुम
ज़ आइन्दः व बगुज़श्तः-ए-ख़ुद याद मकुम
हाले ख़ुश बाश  व उम्र बरबाद मकुम 


बीत गया है जो दिन उसको याद न कर
आने वाले कल की भी फ़रियाद न कर
आने वाले, बीते कल से, क्या मतलब
ख़ुश हो कर रह आज, उम्र बर्बाद न कर


Friday, 24 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई.... शुद दावा-ए-दोस्ती दरीं दैर हरम.... 10

शुद दावा - ए-दोस्ती दरीं दैर हराम
उल्फ़त ज़ के मर्द मे कुजा दोस्त कुदाम
दामन ज़ हमः कशीदन औला बाशद
अज़ बह्रे के सलामस्त व कलाम

इस जहाँ में दावा-ए-दोस्ती ही था हराम
दोस्त कौन, उल्फ़त से था किसे क्या काम
दामन हर इक से बचा के रहना ही था मुफ़ीद
हर इक से दूर की ही रही सलाम-ओ-कलाम

Thursday, 23 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई.... मय ख़ुर्दन न शाद बूदन आईने-मनस्त ..... 9

मय ख़ुर्दन न शाद बूदन आईने-मनस्त
फ़ारिग़ बूदन ज़ कुफ़्रो दीने-मनस्त
गुफ़्तम अरूसेदह्र काबिते-तू चीस्त
शगुफ़्ता दिल ख़ुर्रमे-तू काबीने-मनस्त

 मय को पीना और ख़ुश रहना यही नियम है मेरा
फ़ारिग़ हूँ मैं कुफ़्रो - ओ-दीन से यही नियम है मेरा
मुँह दिखलाई क्या लोगी, पूछा दुनिया - दुल्हन से
तेरे दिल की ख़ुशी, मेह्र की रक़म, नियम है मेरा

Wednesday, 22 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई.... हर दिल कि दरऊ मेह्रो-महब्बत बिसिरिश्त.... 5

हर दिल कि दरऊ मेह्र-महब्बत बिसिरिश्त
गर साकिने-ए-मस्जिद व गर ज़ अहले-किनिश्त
दर दफ़्तरे-इश्क़ नामे-हरकस कि अविस्त
आज़ाद ज़ दोज़ख़स्त न फ़ारिग़ ज़ बिहिश्त

गुँथा हुआ हर वो दिल जिसमें हो करुणा, प्यार।
मस्जिद का वासी मन्दिर वालों में ही है यार। 
लिखा प्यार की पोथी में जिस भी इंसाँ का नाम। 
स्वर्ग, नरक से वो आज़ाद हो गया है ऐ यार।। 

Tuesday, 21 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई बा नफ़्स हमेशा दर नबर्दम चि कुनम .... 4

बा नफ़्स हमेशा दर नबर्दम् चि कुनम
व ज़ कर्दा-ए-खेशतन बदर्दम् चि कुनम
गीरम कि ज़ मन दल गुज़रानी ब करम
ज़ाँ शर्म कि दीदी चि कर्दम चि कुनम

हवस में मुब्तिला रहता हमेशा मैं क्या करूँ
जो करता हूँ रहूँ उससे पशीमाँ मैं क्या करूँ 
तिरी रहमत मुझे भी बख़्श देगी, जानता हूँ. 
तू करते देखता इससे पशीमाँ मैं क्या करूँ 

भजन..... रवि मौन

हे प्रभु तुम हो दीनाधार
बिना कृपा के जीवन नैया कैसे होगी पार?

इस दुनिया में बहुत मिले हैं प्यार दिखाने वाले 
बाहर हैं उजले बगुले सम भीतर से हैं काले
इनके चंगुल में फँस कर हो जीवन ही बेकार। 
हे प्रभु तुम हो दीनाधार 

दया दृष्टि श्रीहरि की जिस का कोई लगे न मोल
सिर्फ़ एक तुलसी का पत्ता, श्रद्धा के कुछ बोल
किसी जगह पर पूजा कर लें बस मन में हो प्यार 

तीन लोक के स्वामी को है सिर्फ़ प्रेम की
किस विधि से पूजा करते हो क्या इसकी परवाह
उन्हें दिखाई दे जाता है तेरे मन का प्यार।। 

ेकिस कुल मे जन्मे क्या शिक्षा क्या करते हैं काम 
सभी बात ये लगें अनर्गल जब लें  हरि का नाम
प्रेम देखते मे़रे स्वामी जो भी हो व्यवहार।। 

जब जब विपदा पडै भक्त पर दौड़े आएँ नाथ
कभी गरुड़ पर आते कभी छोड़ कर उसका साथ
उन्हें बुलाती तेरी केवल अन्तिम एक पुकार

जब तक तुमको आशा जग से क्यों आएँगे स्वामी
कोई और सम्भालेगा यह मानो तुम और स्वामी 
प्रेम सुधा की जब वे चाहें कर देंगे बौछार 

नहीं यज्ञ की आशा तुमसे न व्रत की अभिलाषा 
इनको केवल प्रेम चाहिए समझें वे यह भाषा
बिना प्रेम के कैसे तुम पाओगे उनका प्यार 





Monday, 20 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई. या रब तू गिलम सिरिश्तः-ए-मन चि कुनम . ....2.

या रब तू गिलम सिरिश्तः- ए- मन चि कुनम
पुश्तम व कस्बम तू रिश्ता मन चि कुनम
हर नेको-बद कि अज मन आमद बवजूद
तू बर सरे-मन निविश्ता मन चि कुनम

या रब! मेरी मिट्टी को गूँधा तूने मेरा करना क्या
मेरी पीठ के सब छेद सीए तूने मेरा करना क्या 
हर अच्छाई और बुराई जिस से  मैं बावस्ता हूँ
मेरी किस्मत में तो लिक्खे तूने मेरा करना क्या 

Sunday, 19 January 2025

मंकुतिम्मा ना कग्गा

 'मंकुतिम्मा ना कग्गा'

 

कवि परिचय:

  डॉ देवनाहल्ली वेंकटरमणय्या गुंडप्पा अथवा डि. वि. गुंडप्पा अथवा कन्नडिगा लोगों द्वारा प्यार से डि. वि. जि. बुलाए जाने वाले श्रीयुत सन् १८८७ की १७वीं मार्च को कर्नाटक राज्य के कोलार जिले के मुलबागिलु में जन्मे।

 बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी, मेधावी और प्रतिभाशाली डि. वि. जि. अपने जीवनकाल में पत्रकार, संपादक, व्यक्ति जीवनचरित्रकार, कवि, साहित्यकार इत्यादि होते हुए भी बहुत विनम्र और निष्ठावान होने के कारण सभी पीढ़ी के लोगों के आदर्श हैं।

 यद्यपि डि. वि. जि. की शिक्षा उच्च विद्यालय में ही रुक गई थी, मगर उन्होंने वेदों का और कन्नड़, अंग्रेजी, संस्कृत व तेलगु भाषाओं की अनेक श्रेष्ठ कृतियों का अध्ययन किया। स्वामी विवेकानंद और कई स्वतंत्रता सेनानियों के भाषणों से ये प्रभावित थे। मुख्यतः गोपाल कृष्ण गोखले जी की विचारधारा और व्यक्तित्व के कारण उनके प्रति पूज्य भावना रखते थे। आगे चल कर उन्होंने 'गोखले सार्वजनिक विचार संस्था' के नाम से एक संस्था की भी स्थापना की जो अब तक क्रियाशील है।

 गुंडप्पा जी कई पत्रिकाओं में पत्रकार, कई में संपादक थे और उन्होंने स्वयं कई पत्रिकाओं को प्रारंभ कर निर्वाहित किया।

कन्नड़ के ही नहीं बहुशः भारत के अत्याद्भुत साहित्यकारों में एक डि. वि. जि. की उत्कृष्ट कृतियों में 'अंतःपुर गीते', मननकाव्य 'मंकुतिम्मा ना कग्गा', अनेक जीवन चरित्र, शेक्सपीअर का 'मैक बेत', टेनिसन का 'दि कप' के अनुवाद मुख्य हैं।

उनके द्वारा रचित राजकीय, धर्म और संस्कृति संबंधित निबंध प्रथम श्रेणी के हैं।

उन्होंने ५० से अधिक पुस्तकों की रचना की जिनमें कुल मिला कर ८००० से भी अधिक पृष्ठ हैं।

उनकी सभी साधनाओं को देखते हुए मैसूर विश्वविद्यालय ने १९६१ ई. में उन्हें ' दि लिट्' की पदवी प्रदान की। सन् १९७४ में भारत सरकार ने उन्हें देश के श्रेष्ठ सम्मान 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया।

डि. वि. जि. ने अपने जीवनकाल में अनेक महान लोगों के साथ काम किया और उनके आदर-सम्मान के पात्र बने। पर कभी उनके प्रभाव का उपयोग अपने व्यक्तिगत कार्य के लिए नहीं किया। अपनी सेवाओं के लिए उन्होंने कभी किसी से धन की अपेक्षा नहीं की। उनके लिए एक बार सार्वजनिक रूप से १ लाख रुपए एकत्रित किये गए। उन्होंने उसे गोखले संस्था को दान स्वरूप दे दिया। इसी प्रकार अनेक बार उन्होंने अपनी पारितोषित धनराशि दान में दी।

अंततः अपनी सभी कृतियों का अधिकार संस्था को सौंप कर जाने वाले प्रज्ञ नायक थे डि. वि. जि.।

ऑक्टोबर ७, १९७५ को पत्रकार, साहित्यकार, राजकीय विश्लेषक, अद्भुत मेधावी, गोखले संस्था के संस्थापक गुंडप्पाजी हम सभी को छोड़ कर चले गए।

 

मंकुतिम्मा ना कग्गा:

 

 डि. वि. जि. की अत्यंत प्रसिद्ध कृतियों में से एक है 'मंकुतिम्मा ना कग्गा'. इसकी गहराई और विस्तार को नापना बहुत कठिन और संभवतः असाध्य हैइसके सृजन को सात दशक से अधिक हो गए हैं, उसके पश्चात भी साहित्यप्रियों की इसके प्रति तृष्णा शान्त नहीं हुई हैऐसा कहना असत्य नहीं होगा कि कन्नड़ साहित्य में आसक्ति रखने वालों की कन्नड़ की उत्कृष्ट कृतियों की सूची में संभवतः 'मंकुतिम्मा ना कग्गा' का स्थान सर्वप्रथम होगाकर्नाटक के लोग इस कृति का आस्वादन पढ़ने में ही नहीं, अपितु नित्यपारायण, गायन, नृत्य, नाटक इत्यादि विभिन्न रूपों में करते हैंइस पर आधारित अनेकानेक उपन्यास-प्रवचन के कार्यक्रम और व्याख्यान हुए और आज भी हो रहे हैंश्रद्धापूर्वक अनेक लोग इसे कन्नड़ की भगवद्गीता मानते हैंइस कृति को उस स्तर का मौल्य मिलना पूर्णतः उचित है

 

शीर्षक का अर्थ:

 

 साधारणतः कन्नड़ भाषा में मंकुतिम्मा पद का प्रयोग मंदबुद्धि, मूर्ख, मूढ़, जड़मति की भांति अवहेलना के लिए किया जाता हैउस अर्थ में इस शीर्षक को रखने पर भी केवल यही एक अर्थ नहीं हैगुंडप्पाजी की प्रतिभा बहु-सूच्य हैइस शीर्षक के पीछे और गहन अर्थ भी हैं

  मंका-तिम्मा कग्गा इन तीन शब्दों की दृष्टि से देखें तो मंका/मंकु ध्यानशीलता को दर्शाता है, अंतर्मुखी होना भी इसका पर्यायवाची कहा जा सकता हैविशेषतः सदा ध्यानमग्न रहने वाले शिव को भी इस नाम से बुलाया जाता हैतिरुमाले-अप्पा (तिरुमला के स्वामी) के संक्षिप्त रूप तिम्मप्पा के और संक्षिप्त रूप से तिम्मा शब्द बना हैअर्थात् ये नारायण का नाम हैकग्गा शब्द का प्रयोग अर्थ नहीं निकलने वाली पहेली रूपी बातों के स्थान पर किया जाता है

  शिव-केशव की पहेली जैसी बातें एक अर्थ है, किसी एक मंकु-तिम्मा द्वारा कही हुई निरर्थक बातें भी एक अर्थ है

 यह गुंडप्पाजी के शब्दों में एक मननकाव्य है, अर्थात स्वयं ही स्वयं से कह कर मनन करने वाले विचारों का काव्ययहाँ गुंडप्पाजी मंकुतिम्मा शब्द का प्रयोग स्वयं के लिए ही कर रहे हैं

 

वस्तु विचार:

 

इस कृति के विषयवस्तु के संबंध में चार वस्तुओं को देख सकते हैं-

अध्यात्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ।

 

अध्यात्म- हमारा शरीर, चेतना, गहरी संवेदनाएं

 

अधिभूत- भैतिक प्रपंच, दृष्टिगोचर लोक

 

अधिदैव- हमारी श्रद्धा, विश्वास, भाग्य, देवों के प्रति विचार

 

अधियज्ञ- इन तीनों को जोड़ने वाला साधन

 

ये चारों ही कग्गा की विषयवस्तु हैंहर काल में मानवकुल के वांछित विषय होने के कारण कग्गा देश, काल आदि सीमाओं से परे हैहमारा जीवन जब तक है, हमारी भावनाएं जब तक हैं, हमारा अतित्व जब तक है, इस जगत का अस्तित्व जब तक है, तब तक कग्गा संगतपूर्ण रहेगाये सार्वकालिक, सार्वदेशीय और सार्वजनिक है

"ಇದು ಪಂಡಿತರನ್ನೂ, ಪ್ರಸಿದ್ಧರನ್ನೂ, ಪುಷ್ಟರನ್ನೂ ಉದ್ದೇಶಿಸಿದ್ದಲ್ಲ. ಬಹು ಸಾಮಾನ್ಯರಾದವರ ಮನೆಯ ಬೆಳಕಿಗೆ ಇದು ಒಂದು ತೊಟ್ಟಿನಷ್ಟು ಎಣ್ಣೆಯಂತಾದರೆ ನನಗೆ ತೃಪ್ತಿ"

 अर्थात- यह पंडितों, प्रसिद्ध व्यक्तियों, सर्वसम्पन्न व्यक्तियों के उद्देश्य से नहीं लिखा गया है। अत्यंत साधारण मनुष्यों के घर के दीपक में एक बूँद तेल की भांति यह हो तो मुझे संतुष्टि होगी - डि. वि. गुंडप्पा (मंकुतिम्मा ना कग्गा के विषय में उनकी उक्ति)

 

अनुवादक की लेखनी से:

 

 मैं मूल रूप से एक चिकित्सक हूँ। मुझे भाषाओं से प्यार है। चाहता हूँ कि किसी भाषा की उत्कृष्ट काव्य कृति का दूसरी भाषा में रूपान्तरण करूँ। इस के लिए उस भाषा के मर्मज्ञ का सहारा चाहिए।

 

 मेरा सौभाग्य है कि श्री प्रदीप श्रीनिवासन खाद्री जी मिले और मेरा परिचय इस पुस्तक 'मंकुतिम्माना कग्गा' से करवाया। अब वे मुझे हर कग्गा को हिंदी में समझा रहे हैं जिससे कि मैं इसका हिंदी में काव्यानुवाद कर सकूँ। इस पुस्तक की रचना में उनका योगदान मुझसे बहुत अधिक है। आभार प्रकट करने योग्य शब्द मेरे पास नहीं हैं।

 

 यह जानते हुए भी कि मूल रचना का स्तर अनुवाद से बहुत ऊँचा होता है मैं प्रयासरत रहता हूँ।

 

 मूल पुस्तक में गुंडप्पाजी ने हर कग्गा का समापन 'मंकुतिम्मा' पद से किया है। हिन्दी में मैंने इसका समानांतर पद 'भोलेराम' मानकर अनुवाद में इसका प्रयोग किया है। मंकुतिम्मा की ही भाँति भोलेराम का अर्थ भोला, मंदबुद्धि व्यक्ति हो सकता है अथवा भगवान शिव को भोलेभंडारी कहा जाता है और राम भगवान विष्णु का रूप हैं। उस दृष्टि से भी ये हर और हरि की अभिव्यक्ति का स्वरूप है।

 

 इस पुस्तक का मूल भाव वही रहे जो गुंडप्पाजी ने कहा है, यही मेरा प्रयास है। एक भाषा का साहित्य अन्य भाषा में उपलब्ध हो तो यह भाषाओं को जोड़ने वाले सेतु का कार्य करेगा। इसी आकांक्षा को लिए यह पुस्तक आपके सामने प्रस्तुत है।

 

           -रवि मौन

मंकुतिम्मा ना कग्गा

1.    श्री विष्णु विश्वादि मूल, निज माया आसक्त।

परब्रह्मा, सर्वेश, देव ये नाम दे रहे भक्त।

बिन देखे भी श्रद्धा से ही, जपते जिसका नाम।

उस विचित्रता को नमन कर लो भोलेराम।।

      - - - - - - मंकुतिम्मा - - - - - -

2.    जड़ चेतन का अखिल सृष्टि में होता है विस्तार।

करे आवरण इस का ' भीतर भी है संचार।

अप्रमेय है भाव तर्क से परे, सुना अविराम।

उस विषेशता के आगे, झुक जाओ भोलेराम।।

3.  होने या न होने का जो देता न संधान।

निज महिमा से जग भी बने, डाली जिसने जान।

मंगलमय है शक्ति वो विहार करे चहुँधाम।

निश्चित कर उस गहन तत्व को शरणो भोलेराम।


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https://www.ravimaun.com/2025/02/4-8.html





अलाया ऐ हस्साक़ी इदर कासन ब हमफ़िलहा 
कि इ'श्क़ आसाँ नमूद अव्वल वले उफ़्ताद मुश्किलहा 

कड़वी लाल शराब पिला दे, साक़ी यहाँ घुमा दे प्याला 
प्यार लगा था आसाँ पहले , अब मुश्किल ने खोज निकाला

Friday, 17 January 2025

GHAZAL... HAFIZ SHIRAZI

अगर आँ तुर्के-शीराज़ी बदस्त आरद दिले-मारा
ब ख़ाले-हिन्दवश बख़्शम समरक़न्दो-बुख़ारा रा

हाथों में अपने लेले गर महबूब दिल हमारा 
बख़्शूँ उसके काले तिल पर समरक़न्द-ओ'बुख़ारा

बे दहे साक़ी ये-बाक़ी कि दर जन्नत न ख़्वाही याफ़्त 
कनारे-आबे-रुक्नाबाद व गुलगश्ते- मुसल्ला रा

दे साक़ी जो है मय बाक़ी, जन्नत में न मिलेंगे
मुसल्ला का गुलशन, रुक्नाबादी नदी कनारा

फ़ुगाँ कि ईं लुलियाने-शोख़ शीरीं कार शहर आशोब
चुनाँ बुर्दन्द सब्र अज़ दिल की तुर्काख़्वाने-यामारा

शीरीं, शोख़, शरारती , शहर करें सुनसान 
तुर्की डाकू के मानिंद जो लूटे सब्र हमारा

नसीहत गोश कुन जानाँ कि अज़ जाँ दोस्ततर दारंद
जवानाने-सआ'दतमन्द पन्दे-पीरे-दाना रा

खुशकिस्मत नौजवाँ मानते समझदार बूढ़ों की बातें 
सीख हमारी सुन ले प्यारे प्राण से प्रिय ये ज्ञान हमारा 

ज़ इ'श्के-नातमामे-मा जमाले-यार मुस्तग़्नीस्त
ब आबो-रंगो-ख़ालो-ख़त चि हाजत रू-ए-ज़ेबारा

हसीं चेहरा न चाहे रोगन, रंग, सिंगार न कोई तिल
मुकम्मल हुस्न के सानी है इश्क़ कंगाल हमारा

बदम गुफ़्ती व खुर्सन्दम अफ़ाकुल्लाह नकू गुफ़्ती
जवाबे-तल्ख़ मी ज़ेबद लबे-ला'ले- शकर ख़ारा

सुर्ख़ लबों से तल्ख़ बात भी मीठी ही लगती हैं 
गाली भी दोगी तो करना है शुक्रिया तुम्हारा

मन अज़ आँ हुस्ने-रोज़ अफ़जूँ कि यूसुफ़ दाश्त दानस्तम
कि इश्क़ अज़ पर्दः-ए-अस्मत बरूँ आवर्द ज़ुलैख़ा रा

रुकेगी कब तलक वो, रोज़ बढ़ता रूप यूसुफ़ का
  ज़ुलैख़ा तज पर्दः ए अस्मत, न रह पाएगा दोबारा

हदीस अज़ मुत्रिबो-मय गोई व राज़े-दहर कमतर जू
कि कस नकशूदो-न कशायद ब हिकमत ई मुअ'म्मा रा

ना दिमाग़ से गुत्थी ये सुलझी है ना सुलझेगी
बात करो साज़ो-मय की ये जग जंजाल पिटारा

ग़ज़ल गुफ़्ती व दुर सुफ़्ती बेया-ब-ख़ुश-बख़्वाँ 'हाफ़िज़' 
कि बर नज़्मे-तू अफ़्शानद फ़लक उ'क़्दे सुरय्यारा

ग़ज़ल के मोती मीठे सुर में बिखराया कर 'हाफ़िज़' 
हार छिड़कता कृतिका के ये आसमान बेचारा










Monday, 13 January 2025

CHOSEN FOR HYDERABAD

सुब्अ तक वो भी न छोड़ी तूने ऐ बाद-ए-सबा
यादगार-ए-रौनक़-ए-महफ़िल थी परवाने की ख़ाक 

O breeze! You just swept, left nothing in sight. 
Fire moth's ashes were remains of a glorious night. 

कहे जा बँध चला है दास्ताँ का रंग महफ़िल में 
तिरी सुनने लगे हैं रू-ए-जानाँ देखने वाले 
साक़िब लखनवी 

God on saying for the masses now like how you tell. 
They are listening your story who were in her face spell. 

बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय 
जो दिल खोजा आपना मुझ से बुरा न कोय 
कबीर 

Looking for a bad man, I could find none
Looking in my heart I found I was the one. 

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः 
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा। 

टेढ़ी सूँड महा काया है कोटि सूर्य सम करें प्रकाश 
कारज सब सम्पन्न करें मम औ' विघ्नों का करें विनाश। 

फीकी पै नीकी लगै कहिये समय बिचारि
सबका मन हर्षित करे ज्यों विवाह में गारि
रहीम

Unpleasant words sound pleasent , if timely thought and told. 
Marriage abuses are pleasent to ears, although crude and bold. 

जा घट प्रेम न संचरै सो घट जान मसान 
जैसे खाल लोहार की साँस लेत बिनु प्रान 
कबीर 

That heart is like a crematorium, where love doesn't thrive. 
As skin at blacksmith ''s workshop breathes but isn't alive. 

यक़ीं मोहकम अलम पैहम मोहब्बत फ़ातह-ए-आलम
जिहाद-ए-ज़िंदगानी में हैँ ये मर्दों की शमशीरें
इक़बाल 

Self faith, full attempt, world winning love for life. 
These are swords of a man as his religious pre life. 

वो जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने 
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
मुज़फ़्फ़र रज़मी

Eyes of calender have witnessed such torture for crime. 
For fault of some moments, centuries suffered in prime. 

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता 
जावेद अख़्तर 

I expect self respect even from my foes. 
Be it anyone's head, looks no good on toes. 

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी 
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता 
बशीर बद्र 

Helplessness must have come in way. 
None would be disloyal just by the way. 

मिट्टी से बन कर तप कर ही तो बन पाया है प्याला
अंगूरों को विघटित कर के ही तो बनती है हाला
बनने का विघटन का चक्र यहाँ भी चलता रहता है 
शायद यही खींच लाता है मानव को भी मधुशाला 

भग्न हृदय है यह मानव 
अहंनाद जो करे मंच से यहाँ उठाता है प्याला 
वेष बदल कर बैठ गया है यहीं कहीं साक़ीबाला
किसे सुनाए व्यथा हृदय की कौन मंच से सुनता है
इसे सुनाने सुनने वाले मिल जाते हैं मधुशाला 

तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो 
तुम को देखें कि तुम से बात करें
फ़िराक़ गोरखपुरी 

You are addressing me from so near. 
Should I talk with or look at you dear? 

देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख
मजरूह सुल्तानपुरी 

Beyond prison, over garden, on spring have a glance. 
Don't look at your chains, if you want to dance. 

जिस पर हमारी आँखों ने मोती सजाए रात भर
भेजा वही काग़ज़ उन्हें हमने लिखा कुछ भी नहीं 
बशीर बद्र 

On which from both the eyes, pearls kept setting all the night. 
I sent that paper blank to her as nothing else was there to write. 

कहानियों का मुक़द्दर वही अधूरापन 
कहीं फ़िराक़ नहीं है कहीं विसाल नहीं 
बशीर बद्र 

The stories have always an unfinished fate. 
Either meeting or departure is not on plate. 

अख़लाक़, वफ़ा, चाहत, सब क़ीमती कपड़े हैं 
हर रोज़ न ओढ़ा कर इन रेशमी शालों को
बशीर बद्र 

Costly clothes are morality, loyalty 'n desire. 
Silk shawls aren't meant for daily attire. 

तुम मेरी ज़िन्दगी हो ये सच है
ज़िंदगी का मगर भरोसा क्या 
बशीर बद्र 

It's true that you are my life. 
But who can trust his life? 

कभी पा के तुझ को खोना कभी खो के तुझ को पाना
ये जनम जनम का रिश्ता तिरे मेरे दरमियाँ है 
बशीर बद्र 

In a life I find to lose, in another I lose to find. 
Between you and me exists a bond of unique kind. 

तुम्हें लोग कहने लगें बेवफ़ा
ज़माने से इतनी वफ़ा मत करो
बशीर बद्र 

Lest people should call you disloyal. 
With this world, do not be so loyal. 

पलकें भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आँखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते
बशीर बद्र 

The eyelashes glisten while I am asleep.
Eyes yet can't hide my dreams so deep. 

जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता? 

My heart also wants that truth be told. 
What to do? My courage isn't so bold. 

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे 
जब कभी हम दोस्त बन जाएँ तो शर्मिंदा न हों
बशीर बद्र 

Be enemies to hilt, but let some space remain. 
We shouldn't  be ashamed, being friends again. 

दो भटकती हुई रूह जैसे मिलें यूँ मिलीं वो निगाहें मगर ख़ौफ़ है
ज़ीस्त है रात मे जंगलों का सफ़र इस जनम मे भी हम खो न जाएँ कहीं 
बशीर बद्र 

As if two wandering souls have met, those eyes have met but fear is there. 
Life is a journey of woods at night, even in this life they may part somewhere. 

खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग

Khusrau ! On first night, both of us kept awake. 
My body to his desire were there for the take. 
  
खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार

Khusrau ! The stream of love has a reverse flow. 
One who crosses drowns,, one drowned 
fit to go. 

गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस
चल खुसरो घर आपने, रैन भयी चहुँ देस

Damsel sleeps on bed, tress all over her face. 
Khusrau let's go home, it's night all uver the place. 

अंदाज़ हूबहू तेरी आवाज़-ए-पा का था
बाहर निकल के देखा तो झोंका हवा का था
नदीम

The style was exactly your footfall aflush. 
Moving out I found it was wind with a gush. 

प्यार अजब तलवार है जिस पर हम दोनों के नाम लिखे हैं 
टहनी टहनी कलियाँ आँसू पत्थर पत्थर झरना आँसू
बशीर बद्र 

Carved on it are our own names,unique sword of love is to cheer. 
On flowering twigs the tears are buds, on rolling stone in brook is tear. 

ख़ुशबू को तितलियों के परों में छुपाऊँगा
फिर नीले नीले आस्माँ में लौट जाऊँगा 
बशीर बद्र 

Fragrance 'll I conceal in butterfly wings O pal ! 
Back into the blue clouds, I shall go after all. 

आ जा प्यारे नैन में पलक ढाँप तोय लूँ 
ना मैं देखूँ और को ना तोय देखन दूँ
कबीर 

Come in my eyes O lover, with lids I 'll cover thee. 
Neither I' ll see someone else, nor will let you see. 

सजदे करूँ सवाल करूँ इल्तिजा करूँ 
यूँ दे तो कायनात मेरे काम की नहीं 
वो ख़ुद अता करे तो जहन्नुम भी है बहिश्त 
माँगी हुई निजात मेरे काम की नहीं 
सीमाब अकबराबादी 

I pray, I ask for, beg over and over again 
Universe granted thus to me was in vain. 
If He gives it Himself, even hell is heaven. 
Useless is to me begged worldly domain. 

हमें ख़बर है कि हम हैं चराग़-आख़िर-ए-शब
हमारे बाद अंधेरा नहीं उजाला है

We know that we are last lamps of the night. 
What follows is not darkness but morn' light. 

जो रेल की पटरी पे मुझे छोड़ गई थी
उस माँ से ये न कहना ब-क़ैद-ए-हयात हूँ 
बशीर बद्र 

She left me free to die on the railway track. 
Don't tell that mom in life's chains I am back. 

जो मुंतज़िर न मिला वो तो हम हैं शर्मिन्दा 
हमीं ने देर लगा दी पलट के आने में 
जावेद अख़्तर 

We'll, I am ashamed that she could not wait. 
I took far too long to look back at her state. 

ख़ुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है? 
इक़बाल 

 Raise self esteem to a level that before writing future slate. 
Let God Himself enquire, what do you want written in fate? 

ये माना दूर की निस्बत है फिर भी इक त'आल्लुक है
हरम वालों की याद आई तो बुतख़ाना चले आए
चकबस्त 

We are related, though some distance stands. 
I pray in a temple for my Muslim friends. 

मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले 
हँसी आ रही है तेरी सादगी पर
गोपाल मित्तल

When you bless me to live for long. 
How simple you are, I laugh for long. 

दुनिया ने तजुर्बात-ओ-हवादिस की शक्ल में 
जो कुछ मुझे दिया था सो लौटा रहा हूँ मैं 
साहिर लुधियानवी 

What world gave me in name of experience, mishaps. 
What I 've received, am returning
 it all, perhaps. 

याँ की सुपैद-ओ-स्याह में हमको दख़्ल जो है सो इतना है
रात को रो-रो सुब्अ किया और सुब्अ को ज्यों त्यों शाम किया 
मीर तक़ी मीर 

On it's light ' n darkness, I have this little say. 
Wept all through the night 'n somehow passed the day. 

नशेमन छोड़ कर जाना तुम्हारा
हक़ीक़त में शिकस्त-ए-बाग़बाँ है

When you are evicted and move elsewhere. 
Your guardians have failed to keep
 you there. 

नई योनि में घुस पड़े जब भी मन में आय
आत्मा सों बढ़ कर रसिक नहीं ' मौन' कविराय 
रवि मौन 

 It gets deep within next body, when ever there's a desire. 
Soul scores over all lovers, it's tested over time with fire. 

मर्ग इक मांगी का वक़्फ़ा है
यानि आगे चलेंगे दम ले कर
मीर तक़ी मीर 

Death is simply a short period of rest. 
Will go after a while for another quest. 

दिल वो जगह कि फिर आबाद हो सके
पछताओगे सुनो हो ये बस्ती उजाड़ कर
मीर तक़ी मीर 

Heart is not a city that can be rehabilitated. 
Listen! You will repent if this locality is vacated. 

तेरे बिन मुझको ऐ साजन तो घर और बार क्या करना
अगर तू ना इछे मुझ कन तो यह संसार क्या करना? 
वली दकनी

O love! Without you, of a home what 'll I do? 
If you aren't mine, of the world what ' ll I do? 

ऐ ''वली' दुनिया में रहने को मुकाम-ए--आशिक़
कूच-ए-ज़ुल्फ़ है आग़ोशी -ए-तन्हाई है

O' Wali'! In this world for a lover to stay
Are embrace of solitude 'n tress gone astray. 

सरापा आरज़ू होने ने बन्दा कर दिया हम को
वर्ना हम ख़ुदा थे गर दिल-ए-बे-मुद्द'आ होते
मीर तक़ी मीर 

O desire! I turned servile because of you. 
But for you in my heart, I was a god too

नाहक़ हम मजबूरों पर यह तोहमत है मुख़्तारी की
करना है सो आप करे है हमको अबस बदनाम किया 
मीर तक़ी मीर 

"Do as you like"! What a crime, what a blame! 
He does it all Himself 'n that too in our name. 

ख़ुदा कहो या रब्ब कहो या कह लो भगवान 
धर्म कहो मज़हब कहो या कह लो ईमान
जो भी इस का नाम दो है लफ़्ज़ों का फ़र्क़
ऊपर वाले के लिए सब हैं एक समान 
रवि मौन 

मैं इसे शोहरत कहूँ या अपनी रुस्वाई कहूँ 
मुझ से पहले उस गली में मेरे अफ़साने गए 
ख़ातिर ग़ज़नवी

Should I call it infamy or my fame?
My tales were in her lane prior to name. 



























Sunday, 12 January 2025

अष्टावक्र महागीता एकादश प्रकरणः श्लोक संख्या ६

नाहं देहो न मे देहो बोधोऽहमिति निश्चयी ।
कैवल्यं इव सम्प्राप्तो न स्मरत्यकृतं कृतम्।। ६।।
अष्टावक्र महागीता एकादश प्रकरणः ज्ञानाष्टक 
श्लोक संख्या ६

हिन्दी पद्यानुवाद.    रवि मौन 

न तो मैं शरीर हूँ न ये शरीर मेरा है। 
मैं विशुद्ध बोध हूँ यही निश्चय मेरा है। 
देह होते हुए भी विदेह यह सत्पुरुष का नूर। 
कृत अकृत को भुला कर आकांक्षा से दूर।। ६।।


माँ........ रवि मौन

           श्रीगणेशाय नमः

भक्ति भाव श्रीराम में, काहू सौं न दुराव।
ममता, स्नेह व सौम्यता, माँ के रहे स्वभाव।।

जब भी आती याद तो, जल भर आवें नैन।
मुझे प्रेम सुत सम मिला, यही असीमित चैन।।

विलय आत्मा का हुआ, परमात्मा में जाय। 
यादें बिखरी हैं यहाँ , केहि विधि नाहिं समाय।। 

रवि मौन...१२.१  २०२५   प्रातः  ४-०४


Tuesday, 7 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई.... मादमे ओ-मा'शूक़ दरीं कुंजे-ख़राब....

मादमे ओ-मा'शूक़ दरीं कुंजे-ख़राब
जानो-दिलो-जामः दर रह्ने-शराब
फ़ारिग़ ज़ उम्मीदे-रहमतो-बरिमे-अ'ज़ाब 
आज़ाद ज़ ख़ाको-बादो-आतिशो-आब 

मैख़ाने के इस कोने में मैं, मेरा मा'शूक़, शराब
रह्न जाँ, दिल, जाम रक्खे, पी सकूँ जिस से शराब
हो गया आज़ाद पानी, हवा, आतिश, ख़ाक से
अब न रहमत की तमन्ना और डर जो हों अज़ाब 

Saturday, 4 January 2025

उम्र ख़य्याम की रुबाई.... ईं चर्ख़े-फ़लक कि मा दरू हैरानेम.... 8

ईं चर्ख़े-फ़लक कि मा दरू हैरानेम
फ़ानूस ख़याल अज़ूमिसाले दानेम
ख़ुर्शीद चिराग़दाँ व आलम फ़ानूस 
मा चूँ सूरेम कन्दरू हैरानेम



ये चर्ख़े-फ़लक जिस पर हैं हम सभी हैराँ
इक सूरत-ए-फ़ानूस ही लगता है ये सामाँ
सूरज चिराग़दान और फ़ानूस सा आलम
हम चित्र हैं दीवार पर और अक्स से रवाँ

Thursday, 2 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई.... बा नफ़्स हमेशा दर नबर्दम् चि कुनम.... 4

बा नफ़्स हमेशा दर नबर्दम् चि ़कुनम
च ज़ कर्दा-ए- खेशतन बदर्दम् चि कुनम
गीरम कि ज़ मन दर गुज़रानी ब करम
ज़ाँ शर्म कि दीदी चि कर्दम चि कुनम
उमर ख़य्याम 

है जंग जारी नफ़्स से पर क्या करूँ कहो
जलता हूँ अपने कर्म से पर क्या करूँ कहो
कर देगा दर गुज़र, मैं जानता तिरा करम
 शर्मिंदा हूँ तू देखता है मगर क्या करूँ कहो 

रूपान्तरण... रेवती लाल शाह एवम् रवि मौन

जाना मन ओ तू नमूनः-ए-परकारेम
सर गरचः दो कर्दाएम-एक तन आरेम
बर नुक़्ता खानेम कनूँ दायरा वार
ता आख़िरकार सर बहम बाज़ आरेमऐ
उमर ख़य्याम 

जानाँ मैं और तू तो हैं, जैसे होता परकार 
सर तो दो हैं पर यही इक शरीर आकार 
घूम रहे हैं इक घेरे में, बिन्दु वही आधार 
सर भी तो मिल जाएँगे अपने आख़िरकार 

रूपान्तरण.....रेवती लाल शाह एवम्  रवि मौन 

Wednesday, 1 January 2025

राधा-कृष्ण विवाह........ रवि मौन

ब्रह्मा जी ने करवाया था राधा-कृष्ण विवाह। 
दर्शन मन्दिर के करें भर मन में उत्साह।

शुभस्थल है भाण्डीर वन, वट वृक्ष की छाया। 
 श्रीब्रह्मा ने ही चुना औ' निज धर्म निभाया। 

द्वापर युग की यह कृति है वृन्दावन से कुछ दूर।
श्रीराधाजी के विग्रह में दिखे स्पष्ट सिन्दूर।
  
ब्रह्म कुण्ड है जहाँ अग्नि के फिर कर चारों ओर। 
 घूमे सात बार राधा संग मुरलीधर चितचोर।

इस दैवी घटना से कितने ही मानव अनजान। 
पढ़िए गर्गसंहिता तथा ब्रह्म वैवर्त पुराण ।

'मौन' तुम्हारी लेखनी को अब दो विश्राम।
मात सरस्वति की कृपा से हो पाया काम।। 

ग़ज़ल. हाफ़िज़ ईरानी. तर्जुमा. रेवती लाल शाह एवम् रवि मौन

 अलाया ऐ हस्साक़ी इदर का न ब हमफ़िलहा
कि इ'श्क़ आसाँ नमूद अव्वल वले उफ़्ताद मुश्किलहा

सुर्ख़ तल्ख़ मय भर कर मुझको साक़ी दे  प्याला
प्यार लगा आसाँ पहले पर अब मुश्किल  दोबाला

ब बू-ए-नाफ़ः कि आख़िर सबा ज़ तुर्रः बिकुशायद
ज़ ताबे- जा' दे-मुश्कीनश चि ख़ूँ उफ़्ताद दर दिलहा

ये ख़ुशबू नाफ़ की है जब सबा बिखराएगी गेसू
ताब कस्तूरी ज़ुल्फ़ों की जमा दे ख़ून दिल वाला

ज़ि मय सज्जाद रंगीं कुन गर्त पीरे-मुग़ाँ गोयद
कि सालिक़ बेख़बर न बुवद ज़ राहे-रस्में-मंज़िलहा

सज्जादा मय से रंगीं कर तुझे पीरे मुग़ाँ कह दें
कब अनजान रहबर मंज़िल-ओ' दस्तूर ने पाला