बिना कृपा के जीवन नैया कैसे होगी पार?
इस दुनिया में बहुत मिले हैं प्यार दिखाने वाले
बाहर हैं उजले बगुले सम भीतर से हैं काले
इनके चंगुल में फँस कर हो जीवन ही बेकार।
हे प्रभु तुम हो दीनाधार
दया दृष्टि श्रीहरि की जिस का कोई लगे न मोल
सिर्फ़ एक तुलसी का पत्ता, श्रद्धा के कुछ बोल
किसी जगह पर पूजा कर लें बस मन में हो प्यार
तीन लोक के स्वामी को है सिर्फ़ प्रेम की
किस विधि से पूजा करते हो क्या इसकी परवाह
उन्हें दिखाई दे जाता है तेरे मन का प्यार।।
ेकिस कुल मे जन्मे क्या शिक्षा क्या करते हैं काम
सभी बात ये लगें अनर्गल जब लें हरि का नाम
प्रेम देखते मे़रे स्वामी जो भी हो व्यवहार।।
जब जब विपदा पडै भक्त पर दौड़े आएँ नाथ
कभी गरुड़ पर आते कभी छोड़ कर उसका साथ
उन्हें बुलाती तेरी केवल अन्तिम एक पुकार
जब तक तुमको आशा जग से क्यों आएँगे स्वामी
कोई और सम्भालेगा यह मानो तुम और स्वामी
प्रेम सुधा की जब वे चाहें कर देंगे बौछार
नहीं यज्ञ की आशा तुमसे न व्रत की अभिलाषा
इनको केवल प्रेम चाहिए समझें वे यह भाषा
बिना प्रेम के कैसे तुम पाओगे उनका प्यार
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