Friday, 24 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई.... शुद दावा-ए-दोस्ती दरीं....

शुद दावा - ए-दोस्ती दरीं दैर हराम
उल्फ़त ज़ के मर्द मे कुजा दोस्त कुदाम
दामन ज़ हमः कशीदन औला बाशद
अज़ बह्रे के सलामस्त व कलाम

इस जहाँ में दावा-ए-दोस्ती ही था हराम
दोस्त कौन, उल्फ़त से था किसे क्या काम
दामन हर इक से बचा के रहना ही था मुफ़ीद
हर इक से दूर की ही रही सलाम-ओ-कलाम

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