Sunday, 26 January 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई... मय बर कफे - मा नह कि दिलम दर ताब अस्त......

मय बर कफे-मा नह कि दिलम दर ताब अस्त
वीं उम्रे-गुरेज़ पा-ए-चूँ सीमाब अस्त
बर ख़ेज कि बेदारी-ए-दौलत ख़्वाब अस्त
दरयाब कि आतिशे-जवानी आब अस्त

मय मेरी हथेली में दे उलझन में यही है
पारे के ही मानिंद उम्र ये दौड़ रही है
उठ! दौलत का जगना भी इक ख़्वाब है
समझ कि पानी जवानी की आग रही है

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