ऐज़द दानद गिले-मरा ज़ चि. सिरिश्त
चूँ काफ़िरे-दरवेशम् व यूँ कुहूबः-ए-ज़िश्त
न दीन व न दुनिया व न उम्मीदे-बिहिश्त
लायक मैं न मस्जिद के हूँ न मन्दिर के द्वार
किस मिट्टी से गूँधा मुझको यह जानें करतार
हूँ काफ़िर दरवेश या एक तवायफ़ जान
मुझे चाह न बहिश्त की, न मज़हब, संसार
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