व ज़ कर्दा-ए-खेशतन बदर्दम् चि कुनम
गीरम कि ज़ मन दल गुज़रानी ब करम
ज़ाँ शर्म कि दीदी चि कर्दम चि कुनम
हवस में मुब्तिला रहता हमेशा मैं क्या करूँ
जो करता हूँ रहूँ उससे पशीमाँ मैं क्या करूँ
तिरी रहमत मुझे भी बख़्श देगी, जानता हूँ.
तू करते देखता इससे पशीमाँ मैं क्या करूँ
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