अज़ रू-ए-हक़ीक़त न मजाज़ी करदम
दर ज़ुल्फ़े-तू दीदम दिले-दीवानः-ए-ख़ेश
मन बा दिले-ख़ेश दस्त दराज़ी करदम
तेरी ज़ुल्फ़ों की तरफ़ जो हाथ बढ़ा है मेरा
हक़ीक़तन कुछ न ग़लत काम हुआ है मेरा
अपने पागल दिल को जो देखा था ज़ुल्फ़ में
जिससे हुई ज़्यादती, वो दिल ही रहा है मेरा
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