मय ख़ूने-रज़स्त व मन दिगर ख़ूँ न ख़ुरम
पीरे-ख़िर्दम गुफ़्त बहुर्मत गोई
गुफ़्तम कि मज़ाह मि कुनम चूँ न ख़ुरम
फूल के रंग की शराब नहीं पीऊँगा
मय अंगूर का है ख़ून, नहीं पीऊँगा
पूछा इक बुज़ुर्ग ने, है ईमाँ इस पर
मैं मज़ाक करता हूँ क्यूँ नहीं पीऊँगा
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