Monday, 24 February 2025

उमर ख़य्याम की रुबाई.... दर वादी-ए-ग़ैब चूँ दवीदन हवदस्त.....

दर  वादी-ए-ग़ैब  चूँ   दवीदन  हवसस्त
अज़  ऐब  कसाँ नज़र बुरीदन  हवदस्त
जी साँ कि मन अहवाले-जहाँ मी बीनम
दामन ज़  ज़मानः  कशा   देन  हवदस्त


वादी-ए-ग़ैब  में से यूँ उड़ना हवस ही है
ग़ैरों के ऐब  को यूँ  तकना  हवस ही  है
दुनिया के जो हालात नज़र आए हैं मुझे
दामन ज़माने से बचा रहना  हवस ही है

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