सर फ़ित्नः रूम रा क़ियामत हवस अस्त
ज़ अब्रू-ए-तू मेहराब नशीं शुद चश्मस्त
आँ काफ़िर मस्त रा इमामत हवस अस्त
ज़ुल्फ़ों को तेरे रुख़ पे ठहरने की तमन्ना
रूम के दंगे को ख़त्म करने की तमन्ना
तेरी भवों के मेहराब में आँख बैठी है
मस्त काफ़िर को इमाम बनने की तमन्ना
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