मन बादः खुरम व लेक मस्ती न कुनम
अल्लाह बक़दह दराज़ दस्ती न कुनम
दानी गरज़म ज़ मय परस्ती चि बूद
ता हम चू तू खेशतन परस्ती न कुनम
हूँ तो मैं मयनोश मगर मस्ती तो नहीं करता हूँ
प्याले पर तो ज़ुल्म मेरे अल्लाह नहीं करता हूँ
तू क्या जाने वजह रही क्या मयनोशी की मेरी
मस्ती में जब रहूँ, ख़ुदपरस्ती तो नहीं करता हूँ
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