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Tuesday, 4 March 2025

कँवल एम ए....अहल-ए-जहाँ को मुझ से अदावत है क्या करूँ

अहल-ए-जहाँ को मुझ से अदावत है क्या करूँ
ये तर्ज़-ए-इंतिक़ाम-ए-मोहब्बत है क्या करूँ

नाकामी-ए-वफ़ा पे नदामत है क्या करूँ
ऐ दिल ये एक तल्ख़ हक़ीक़त है क्या करूँ

ख़ुद ग़म-पसंद मेरी तबीअत है क्या करूँ
इस को हर एक रंज में राहत है क्या करूँ

इज़हार-ए-दर्द-ए-दिल भी कुछ आसाँ नहीं मगर
ज़ब्त-ए-सितम भी एक मुसीबत है क्या करूँ

अपना रहा हूँ ग़म को बड़े एहतिराम से
रोज़-ए-अज़ल से ये मिरी आदत है क्या करूँ

दिल का क़रार छीन लिया किस की याद ने
ये ज़िंदगी-ए-हिज्र मुसीबत है क्या करूँ

मेरे पयाम-ए-मेहर-ओ-वफ़ा का असर हो क्या
दुनिया ही बे-नियाज़-ए-मोहब्बत है क्या करूँ

बे-वज्ह जिस के नाज़ उठाता हूँ रात दिन
उस बेवफ़ा को मुझ से अदावत है क्या करूँ

अपनी मुसीबतों का किसी से गिला नहीं
अपना ही दिल मिरे लिए आफ़त है क्या करूँ

दिल में तड़प है सोज़ है ग़म है मलाल है
ऐ जज़्ब-ए-शौक़ ये मिरी क़िस्मत है क्या करूँ

अरमान ऐश का न तमन्ना नशात की
जो मिल गया उसी पे क़नाअत है क्या करूँ

हिम्मत-शिकन हैं राह-ए-मोहब्बत के मरहले
हर मोड़ हर क़दम पे मुसीबत है क्या करूँ

ख़ुद मेरा दिल भी बात मिरी मानता नहीं
इस पर भी अब किसी की हुकूमत है क्या करूँ
कँवल एम ए

The heart doesn't agree with my
 own role. 
What to do, it's now under else's control. 


क्या ख़ूब है ये आलम-ए-दुनिया-ए-शौक़ भी
इक बेवफ़ा से मुझ को मोहब्बत है क्या करूँ

आए न आए दिल को यक़ीं लेकिन ऐ 'कँवल'
उन के हर एक वा'दे में लज़्ज़त है क्या करूँ

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