Friday, 11 April 2025

ASHTAWAKRA MAHAAGEETAA... CHAPTER ONE... SHLOKA NUMBER 17.. अष्टावक्र महागीता प्रथम प्रकरणः..सप्तदशः श्लोकः

निरपेक्ष निर्विकारो निर्भरः शीतलाशयः। अगाधबुद्धिरक्षुब्धो भव चिन्मात्रवासनः।। १७।।

Nirapeksh nirvikaaro nirbharah shiitalaashayah. 
Agaadhabuddhirakshubdho bhava chinmaatravaasanah.. 17..

पक्षरहित औ' निराकार है, निर्भर हैं उस पर सब लोग। 
अति शीतल उसकी प्रवृत्ति है वह नहीं निर्भर होने जोग।
क्रोध नहीं छूता है उसको, यह सब गुण तो तेरे हैं।
निज को निज स्वरूप में स्थित कर, औ' चेतन तब घेरे हैं। 
इच्छा और कामनाओं से रहित आत्मा है, पहचान। 
रूप रंग आकार रहित है, तू अपार गुण की है खान
।। १७।।


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